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बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र - UP-TET Class 1 to 5, 2017 Solved Paper Explanation Q 1 to 15


दोस्तों आज हम uptet में पूछे गए 2017 के प्रश्नों को one liner की तरह पेश कर रहे है। पिछले वर्षों  Previous Year के पेपरों का यह संग्रह आपकी आगामी परीक्षाओं में मद्दद करेगा । 
यहाँ पर हमने प्रश्न क्रमांक 1 से 15 तक के प्रश्नों को वन लाइनर की तरह पेश किया है।
अगले ब्लॉग में 15 से 30 के प्रश्नों को यहाँ रखने की कोशिश करेंगे।
तो चलिये start करते है आज के प्रश्नों को  ....

1- सीखने की मात्रा तथा समय की परस्पर संबंध को चित्रांकित करने पर जो वक्र रेखा प्राप्त होती है उसे अधिगम वक्र रेखा कहा जाता है।

 अधिगम वक्र में कभी कभी देखा जाता है कि अधिगम वक्र का कुछ भाग अत्यंत कम उन्नति को दर्शाता है।

नगण्य उन्नति को प्रदर्शित करने बाले इस प्रकार के वक्र का भाग अधिगम के पठार कहलाते है।

अधिगम के वक्र बनाने के कई कारण हो सकते है।
जैसे - अधिगमकर्ता की आवश्यकता, ध्यान , रुचि, उत्साह, वातावरणीय व्यवधान , थकान, मनोशारीरिक सीमा, ज्ञान की सीमा आदि।

 2- गेट्स व अन्य के अनुसार " अनुभव और प्रशिक्षण के परिणामस्वरूप व्यवहार में परिवर्तन होता है। "

3- स्टैनफोर्ड बिने परीक्षण  बुद्धि का मापन करता है। सन 1905 में बीने ने अपने सहयोगी साइमन के साथ आधुनिक प्रकार का सबसे पहला सफल बुद्धि परीक्षण तैयार किया था।

4- युंग ने मनोवैज्ञानिक आधार पर व्यक्तित्व को तीन भागों में विभक्त किया है। 
      अंतर्मुखी व्यक्तित्व
      बहिर्मुखी व्यक्तित्व 
      उभयमुखी व्यक्तित्व

5- सामाजिक विकास से तात्पर्य विकास की उस प्रक्रिया से है, जिसके द्वारा व्यक्ति अपने सामाजिक वातावरण के साथ अनुकूल बनाता है।

सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार अपनी आवश्यकताओं एवं रूचियों पर नियंत्रण करता है।

दूसरों के प्रति अपना उत्तरदायित्व समझता है तथा व्यक्तियों के साथ प्रभाव पूर्ण ढंग से सामाजिक संबंध स्थापित करने का प्रयास करता है।

सामाजिक विकास के फल स्वरुप व्यक्ति समाज का एक मान्य सहयोगी उपयोगी तथा कुशल नागरिक बन जाता है ।

इस प्रकार सामाजिक परिवेशजन्य तत्व बच्चों के सामाजिक विकास को प्रभावित करता है।

6- अन्य प्राणियों की अपेक्षा मनुष्य के शारीरिक विकास की गती अनियमित होती है ।

 शैशवावस्था में शारीरिक वृद्धि एवं परिवर्तन तीव्रतम गति से होता है ।

 बाल्यावस्था में यह गति धीमी हो जाती है। पुनः किशोरावस्था में विकास तीव्रतम गति से होता है । 

शैशवावस्था एवं बाल्यावस्था में शारीरिक विकास ' सिर से पैर की ओर ' एवं ' निकट से दूर की ओर ' विकास के सिद्धांत के अनुसार होता है।

7- निरन्तर विकास का सिद्धान्त , परस्पर सम्बन्ध का सिद्धान्त , समान प्रतिमान का सिद्धान्त , वंशानुक्रम तथा वातावरण की अंतःक्रिया का सिद्धान्त , परिमार्जिता का सिद्धान्त , एकीकरण का सिद्धान्त , मस्तकाधोमुखी का सिद्धान्त , केन्द्र से निकट - दूर का सिद्धान्त , सामान्य से विशिष्ट प्रतिक्रियाओ का सिद्धान्त , व्यक्तिगतता का सिद्धान्त , विकासक्रम का सिद्धान्त आदि विकास के सिद्धान्त हैं।

 जबकि अनुकूलित प्रत्यावर्तन का सिद्धान्त अधिगम से सम्बन्धित है।

8- हरलॉक  ने बालक के विकास को परिभाषित करते हुए लिखा है " विकास की प्रक्रिया बालक की गर्भावस्था से उसकी मृत्यु तक एक क्रम में चलती है तथा प्रत्येक अवस्था का प्रभाव दूसरी अवस्था पर पड़ता है । 

इनके अनुसार- “ विकास के परिणामस्वरूप व्यक्ति में नई - नई विशेषताएँ और नई - नई योग्यताएँ प्रकट होती है ।,"

9- मैक्डूगल के अनुसार- " मूलप्रवृत्ति , परम्परागत या जन्मजात मनोशारीरिक प्रवृत्ति है , जो प्राणी को किसी विशेष वस्तु को देखने उसके प्रति ध्यान देने , उसे देखकर एक विशेष प्रकार की संवेगात्मक उत्तेजना का अनुभव करने और उससे सम्बन्धित एक विशेष ढंग से कार्य करने या ऐसा करने की प्रबल इच्छा का अनुभव करने के लिए बाध्य करती है । " 

मैक्डूगल का मूलप्रवृत्तियों का वर्गीकरण मौलिक और सर्वमान्य है । इन्होंने निश्चित शारीरिक क्रियाओं के आधार पर 14 मूलप्रवृत्तियों की सूची दी है और प्रत्येक मूलप्रवृत्ति से सम्बद्ध एक संवेग बताया है ।

10-  डम्बिल के अनुसार " किसी दूसरी वस्तु की अपेक्षा एक वस्तु पर चेतना का केन्द्रीकरण अवधान है । " 

11-  थार्नडाइक ने अपने प्रयोगों के आधार पर सीखने के कतिपय नियमों का प्रतिपादन किया ।
 इन नियमों को मुख्यतः दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-   ( 1 ) मुख्य नियम
 ( 2 ) गौण नियम 

( 1 ) मुख्य नियम के अंतर्गत निम्नलिखित नियम है।

 ( i ) तत्परता का नियम 
 ( ii ) अभ्यास का नियम 
 ( iii ) प्रभाव का नियम

( 2 ) गौण नियम के अंतर्गत निम्नलिखित नियम है।

 ( i ) बहुअनुक्रिया का निमय 
 ( ii ) मानसिक स्थिति का नियम
 ( iii ) आंशिक क्रिया का नियम
 ( iv ) सादृश्य अनुक्रिया का नियम

12- पंजाब विश्वविद्यालय के प्रो . एस . जलोटा ने एक सामूहिक बुद्धि परीक्षण का निर्माण सन् 1963 में किया।
जिसका नाम ‘ साधारण मानसिक योग्यता परीक्षण ' रखा। 

यह परीक्षण हिन्दी , उर्दू एवं आंग्लभाषा में तथा 12 वर्ष से 16 वर्ष के बच्चो के लिए था ।

13-  बुद्धि के द्विकारक सिद्धान्त का प्रतिपादन अंग्रेज मनोवैज्ञानिक स्पीयरमैन ने 1904 में किया था । 

इनके अनुसार बुद्धि दो कारको से मिलकर बनी है-
 सामान्य योग्यता कारक ( G - Factor ) तथा
 विशिष्ट योग्यता कारक ( S- Factor )

14- सीखने के समग्र सिद्धान्त को अंतर्दृष्टि या सूझ का सिद्धान्त भी कहते हैं । 

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन गेस्टाल्टवादी मनोवैज्ञानिको- वोल्फगैंग कोहलर तथा कुर्ट कोफ्का द्वारा किया गया जबकि हल ने सीखने के प्रबलन सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है ।

15- गाल्टन को सुजननशास्त्र का पिता कहा जाता है सुजनन विज्ञान व्यवहारिक वंशानुक्रम की वह शाखा है 

जिसके अंतर्गत वंशानुक्रम के सिद्धांतों की सहायता से भावी पीढ़ियों को वंशानुक्रम में प्राप्त होने वाले लक्षणों को नियंत्रित किया जाता है । 

जिससे मानव जाति की नस्ल सुधर सके ।



आशा करते हैं आपको यह ब्लॉग पसंद आया होगा । हैम आपको इसी तरह विभिन्न TET एग्जाम के प्रीवियस ईयर पेपर लाते रहेंगे।


You are the best.
Just because of you.
It's you without you it is  impossible.
Just because your boss , elders loves you , you can not do everything.



Source - यूथ कॉम्पिटिशन टाइम्स

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